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सापेक्षिक वंचना के सद्व्यवहार से सवर्णों की बनाई जा सकती है: दक्षिण अफ्रीका के गोरों जैसी स्थिति !

सापेक्षिक वंचना के सद्व्यवहार से  सवर्णों की बनाई जा सकती है:  दक्षिण अफ्रीका के गोरों जैसी स्थिति !
Ramnath Vidrohi
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सापेक्षिक वंचना के सद्व्यवहार से  सवर्णों की बनाई जा सकती है:  दक्षिण अफ्रीका केगोरों जैसी.स्थिति
H.L.DUSADH.

तो हिन्दू राज नामक आफत की सृष्टि शक्ति के स्रोतों पर सवर्णों के बेहिसाब वर्चस्व के कारण पैदा हुई है. इस वर्चस्व के कारण ही वे कानून और संविधान की धज्जियाँ उड़ाते हुए जंगलराज कायम करने में सफल हो गए हैं. लेकिन शक्ति के स्रोतों पर बेपनाह कब्जे के कारण वे पूरे गैर- सवर्ण समाज पर खौफ पैदा करने में जरुर कामयाब हो गए हैं.पर,  यही वर्चस्व उनके ध्वंस का कारण भी बन गया है, इसका उन्हें इल्म ही नहीं है. और इल्म इसलिए नहीं है क्योंकि शक्ति के स्रोतों पर उनके बेहिसाब वर्चस्व से जिस सापेक्षिक वंचना के तुंग पर पहुचने लायक हालात भारत में पैदा हो चुके हैं, अज्ञानतावश वंचित समुदायों के नेता और बुद्धिजीवी उसका सद्व्यवहार करने के लिए आगे ही नहीं बढ़ रहे हैं. यदि वंचित समुदायों के नेता सवर्ण वर्चस्व से उपजे हालात का सद्व्यहार करने के लिए आगे बढ़ते हैं तो पता चलेगा जो सापेक्षिक वंचना क्रांति की आग में घी का काम करती है, उसके तुंग पर पहुचने लायक जो हालात वर्तमान भारत में हैं , वैसे हालात फ़्रांसिसी क्रांति पूर्व न तो फ़्रांस में रहे और न ही वोल्सेविक क्रांति पूर्व रूस में. शक्ति के स्रोतों पर सवर्णों का आज जैसा वर्चस्व भारत में है, वैसा ही वर्चस्व नब्बे के  दशक पूर्व दक्षिण अफ्रीका में था , जिसके फलस्वरूप मंडेला के लोगों में सापेक्षिक वंचना का ऐसा उभार हुआ कि बंदूक के बल पर लम्बे समय से कायम गोरों की सत्ता हमेशा के लिए ख़त्म हो गई और आज वे दक्षिण अफ्रीका से भागकर दूसरे देशों में शरण लेने के लिए विवश हैं. शक्ति के स्रोतों के मामले में भारत के सवर्णों और दक्षिण अफ्रीका के गोरों में कितनी साम्यता रही , इसका अनुमान पिछले साल मई में आई वर्ल्ड इन इक्वालिटी लैब की रिपोर्ट से लगाया जा सकता है,जिसमें बताया गया था कि देश की धन- दौलत पर सामान्य वर्ग अर्थात सवर्णों का 89 % कब्जा है ,जबकि विशाल ओबीसी आबादी 9 % तो दलित 2. 8 % धन-दौलत पर गुजारा करने के लिए विवश हैं. इसके पहले 2006 से वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम की ओर से प्रकाशित हो रही  ‘ ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट’  2020 से लगातार बता रही है कि  भारत के आधी आबादी स्थिति नेपाल, म्यांमार, पकिस्तान , बांग्लादेश, श्रीलंका इत्यादि से बदतर है और उसे आर्थिक रूप से भारत के पुरुषों की बराबरी में पहुंचने में 250 साल से भी अधिक लगने हैं. कुल मिलाकर सवर्णों के हाथों में शक्ति के समस्त स्रोत सौंपने के चक्कर में मोदी सरकार से जो बड़ी चूक हुई है,उससे  दलित , आदिवासी, पिछड़े, अल्पसंख्यकों और आधी आबादी में सापेक्षिक वंचना का भाव पनपने का मंडेला के लोगों से भी बेहतर अवसर मिल गया है. ऐसे में भारत में के बहुजन  नेता, बुद्धिजीवी और छात्र यदि मंडेला के लोगों से प्रेरणा लेकर सपेस्क्षिक वंचना के भाव को शिखर पहुँचाने का सम्यक प्रयास करें तो भारत के सवर्ण भी दक्षिण अफ्रीका के गोरों जैसी विकट स्थिति का सामना करने के लिए विवश हो जायेंगे.स्मरण रहे दक्षिण अफ्रीका में भारत के सवर्णों की भांति  शक्ति के स्रोतों पर गोरों का जो बेहिसाब वर्चस्व कायम हुआ,उससे एक अंतराल बाद मंडेला के लोगों में सापेक्षिक वंचना relative deprivations का एक ऐसा उभार हुआ कि ध्वस्त हो गई गोरों की सत्ता और वे दक्षिण अफ्रीका छोड़कर दूसरे देशों में शरण लेने लगे।यदि भारत के दलित,आदिवासी,पिछड़े ,अल्पसंख्यकों और महिलाओं से युक्त 92.5% वंचित आबादी ठीक से काम करे तो सवर्णों की स्थिति अफ्रीका के गोरों जैसी बनाईं जा सकती है!

तो हिन्दू राज नामक आफत की सृष्टि शक्ति के स्रोतों पर सवर्णों के बेहिसाब वर्चस्व के कारण पैदा हुई है. इस वर्चस्व के कारण ही वे कानून और संविधान की धज्जियाँ उड़ाते हुए जंगलराज कायम करने में सफल हो गए हैं. लेकिन शक्ति के स्रोतों पर बेपनाह कब्जे के कारण वे पूरे गैर- सवर्ण समाज पर खौफ पैदा करने में जरुर कामयाब हो गए हैं.पर,  यही वर्चस्व उनके ध्वंस का कारण भी बन गया है, इसका उन्हें इल्म ही नहीं है. और इल्म इसलिए नहीं है क्योंकि शक्ति के स्रोतों पर उनके बेहिसाब वर्चस्व से जिस सापेक्षिक वंचना के तुंग पर पहुचने लायक हालात भारत में पैदा हो चुके हैं, अज्ञानतावश वंचित समुदायों के नेता और बुद्धिजीवी उसका सद्व्यवहार करने के लिए आगे ही नहीं बढ़ रहे हैं. यदि वंचित समुदायों के नेता सवर्ण वर्चस्व से उपजे हालात का सद्व्यहार करने के लिए आगे बढ़ते हैं तो पता चलेगा जो सापेक्षिक वंचना क्रांति की आग में घी का काम करती है, उसके तुंग पर पहुचने लायक जो हालात वर्तमान भारत में हैं , वैसे हालात फ़्रांसिसी क्रांति पूर्व न तो फ़्रांस में रहे और न ही वोल्सेविक क्रांति पूर्व रूस में. शक्ति के स्रोतों पर सवर्णों का आज जैसा वर्चस्व भारत में है, वैसा ही वर्चस्व नब्बे के  दशक पूर्व दक्षिण अफ्रीका में था , जिसके फलस्वरूप मंडेला के लोगों में सापेक्षिक वंचना का ऐसा उभार हुआ कि बंदूक के बल पर लम्बे समय से कायम गोरों की सत्ता हमेशा के लिए ख़त्म हो गई और आज वे दक्षिण अफ्रीका से भागकर दूसरे देशों में शरण लेने के लिए विवश हैं. शक्ति के स्रोतों के मामले में भारत के सवर्णों और दक्षिण अफ्रीका के गोरों में कितनी साम्यता रही , इसका अनुमान पिछले साल मई में आई वर्ल्ड इन इक्वालिटी लैब की रिपोर्ट से लगाया जा सकता है,जिसमें बताया गया था कि देश की धन- दौलत पर सामान्य वर्ग अर्थात सवर्णों का 89 % कब्जा है ,जबकि विशाल ओबीसी आबादी 9 % तो दलित 2. 8 % धन-दौलत पर गुजारा करने के लिए विवश हैं. इसके पहले 2006 से वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम की ओर से प्रकाशित हो रही  ‘ ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट’  2020 से लगातार बता रही है कि  भारत के आधी आबादी स्थिति नेपाल, म्यांमार, पकिस्तान , बांग्लादेश, श्रीलंका इत्यादि से बदतर है और उसे आर्थिक रूप से भारत के पुरुषों की बराबरी में पहुंचने में 250 साल से भी अधिक लगने हैं. कुल मिलाकर सवर्णों के हाथों में शक्ति के समस्त स्रोत सौंपने के चक्कर में मोदी सरकार से जो बड़ी चूक हुई है,उससे  दलित , आदिवासी, पिछड़े, अल्पसंख्यकों और आधी आबादी में सापेक्षिक वंचना का भाव पनपने का मंडेला के लोगों से भी बेहतर अवसर मिल गया है. ऐसे में भारत में के बहुजन  नेता, बुद्धिजीवी और छात्र यदि मंडेला के लोगों से प्रेरणा लेकर सपेस्क्षिक वंचना के भाव को शिखर पहुँचाने का सम्यक प्रयास करें तो भारत के सवर्ण भी दक्षिण अफ्रीका के गोरों जैसी विकट स्थिति का सामना करने के लिए विवश हो जायेंगे.स्मरण रहे दक्षिण अफ्रीका में भारत के सवर्णों की भांति  शक्ति के स्रोतों पर गोरों का जो बेहिसाब वर्चस्व कायम हुआ,उससे एक अंतराल बाद मंडेला के लोगों में सापेक्षिक वंचना relative deprivations का एक ऐसा उभार हुआ कि ध्वस्त हो गई गोरों की सत्ता और वे दक्षिण अफ्रीका छोड़कर दूसरे देशों में शरण लेने लगे।यदि भारत के दलित,आदिवासी,पिछड़े ,अल्पसंख्यकों और महिलाओं से युक्त 92.5% वंचित आबादी ठीक से काम करे तो सवर्णों की स्थिति अफ्रीका के गोरों जैसी बनाईं जा सकती है!