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सरकारी अस्पताल ने थामी शीला के सांस की डोर, बदल गया समाज का दृष्टिकोण

सरकारी अस्पताल ने थामी शीला के सांस की डोर, बदल गया समाज का दृष्टिकोण
Ramnath Vidrohi
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सरकारी अस्पताल ने थामी शीला के सांस की डोर, बदल गया समाज का दृष्टिकोण

- महिलाओं पर सामाजिक अवधारणा को दे रही चुनौती
- हर जरूरत पर खड़े दिखे स्वास्थ्यकर्मी

सीतामढ़ी। सरकारी अस्पतालों पर भले लाख सवाल उठे, लेकिन यह आम नागरिकों का हमेशा हितैषी रहा है। ऐसी ही एक घटना जिले के डुमरा स्थित भवप्रसाद की शीला देवी के घटित हुई। जिस सरकारी अस्पताल को उसने कुव्यवस्थाओं का अड्डा समझा उसने ही हर कदम पर उसकी संजीदगी और तत्परता दिखा कर उसकी जान बचायी। शीला को टीबी के लक्षण तो थे ही, पर न उसका ध्यान इस तरफ गया और न ही उसने कभी जानने की कोशिश की।  टीबी से गंभीर रूप से पीड़ित शीला इलाज के अभाव में काफी कमजोर हो गई थी।  उसका उचित इलाज भी नहीं हो रहा था। एक दिन इस बात की जानकारी आयुष्मान भारत हेल्थ एंड वेलनेस, लगमा में कार्यरत सीएचओ प्रणव कुमार को लगी। इसके बाद प्रणव कुमार ने उसके इलाज की व्यवस्था शुरू करवाई। उसे सबसे पहले सदर अस्पताल भर्ती कराया गया। फिर बेहतर इलाज के लिए उसे एसकेएमसीएच और पीएमसीएच तक ले जाने की व्यवस्था की गई। बेहतर इलाज और प्रणव की कोशिश से शीला की सांस टूटने से बच गई।

समाज में लोगों का दृष्टिकोण बदल गया

शीला ने बताया कि जब आस-पड़ोस में लोगों को इस बात की जानकारी हुई तो लोगों ने किनारा कर लिया। परिवार के सदस्यों का व्यवहार भी बदलने लगा। गांव की महिलाएं जो कभी साथ में बैठा करती थीं वे सब दूरी बना ली थी। सभी लोग घृणा का भाव करने लगे। इससे काफी निराशा हुई। गांव वाले लोग टीबी को बीमारी नहीं, इसे कलंक के रूप में देखने लगे। 

खान-पान और घर की जिम्मेदारियां सब देखा

शीला ने बताया कि एक महिला होने के नाते घर की जिम्मेदारियां भी थी। साथ ही खाने-पीने को लेकर भी बदलाव करना पड़ा। पहले जहां महिला होने के नाते सबसे लास्ट में खाती थी, टीबी होने के बाद समय पर खाना शुरू किया। साथ ही पौष्टिक खाना भी खाने पर ध्यान दिया। इसके अलावा घर की जिम्मेदारी भी संभाला। 

सरकारी अस्पताल पर बढ़ गया भरोसा

प्रणव कुमार ने कहा कि शीला के साथ जो हुआ वह ऐतिहासिक था। उन्होंने बताया कि आज भी लोग जानकारी के अभाव में जहां-तहां भटकते हैं। सरकारी अस्पतालों में टीबी की बीमारी की सभी जांच और इलाज मुफ्त में उपलब्ध है, लेकिन आज भी लोग अस्पताल नहीं पहुंचते और उनकी जान पर बन जाती है। शीला देवी के साथ भी यही हुआ। प्रणव ने बताया कि पहले तो उसे बीमारी का पता नहीं चला और जब पता चला तो वह सरकारी अस्पताल में इलाज कराने से कतराती रही। काफी समझाने के बाद वह तैयार हुई तो उसका समुचित इलाज जिला अस्पताल से लेकर पटना तक कराया गया। आज वह स्वस्थ है और उसका भरोसा सरकारी अस्पताल पर बढ़ गया है। 

डॉक्टरों-स्वास्थ्य विभाग का पूरा सहयोग मिला

शीला देवी के पति सत्येंद्र सिंह ने बताया कि पैसे के अभाव में वह बीमार पत्नी को बाहर नहीं ले जा पा रहा था। बीमार पत्नी का हाल देख काफी परेशानी में थे। लेकिन आज सत्येंद्र सिंह खुश है और डॉक्टरों को बधाई दे रहे हैं। उन्होंने बताया कि पत्नी को इस बीमारी से उबरने में डॉक्टरों और स्वास्थ्य विभाग का पूरा सहयोग मिला। उन्होंने कहा कि अगर किसी को टीबी हो जाये तो सरकारी अस्पताल जाएं। वहां जांच और इलाज की सुविधा मुफ्त में उपलब्ध है।