Ramnath Vidrohi
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दवा छोड़ी तो लौटा टीबी, नियमित दवाओं से पाया स्वस्थ्य काया
- टीबी को साधारण समझना पड़ा भारी
- 18 वर्ष की आयु में राजू बने टीबी चैंपियन
मोतिहारी। एक सामान्य टीबी को एमडीआर टीबी में परिवर्तित होते मैंने देखा है। बहुत बुरा लगता है जब आपकी छोटी चूक आपकी जान लेने को आतुर हो जाती है। छोटी समझने वाली गलती ही दरअसल मेरी सबसे बड़ी गलती थी। वह गलती टीबी होने पर दवा का सेवन न करना था। इसी बीच मैंने जो खोया वह जीवन का सबसे बहुमूल्य समय था। टीबी बीमारी ने मुझे मेरे जीवन से लगभग दो साल छीन लिए जो मैं अपने भविष्य के लिए लगाने वाला था। यह कहते हुए मच्छड़गावा के 18 वर्षीय राजू असंतुष्ट भाव से संतुष्ट भाव में लौटता है और कहता है। मुझे टीबी हुई, लक्षण वहीं बुखार और लगातार की खांसी थी। हफ्तों बीतने के बाद भी यह कम नहीं हुई। अभी भी मैं और मेरे अभिभावक ने साधारण बीमारी समझ ही पैसा और समय दोनों व्यर्थ किया, नतीजतन हालत और बिगड़ती गयी। अब जाकर मेरे परिवार वालों को और चिंता हुई। मुहल्लों और कुछ सगे संबंधियों की सलाह पर टीबी की जांच करायी।
साधारण टीबी बनी एमडीआर:
जांच में टीबी पता चलने के बाद मैंने सोशल मीडिया और कुछ पत्रिकाओं के माध्यम से टीबी के बारे में जानकारी ली। कुछ बातें तो समझ आयी पर मैंने उसे गंभीरता से नहीं लिया। सरकारी अस्पताल में दवा खाने के बाद कुछ अच्छा महसूस हुआ तो मैंने दवाएं बंद कर दी। कुछ समय स्थिति ठीक रही, फिर अचानक मेरेा चेहरा काला पड़ने लगा, वजन कम होने लगा। मैं पटना इलाज के लिए गया वहां स्थिति नियंत्रण में होने पर पुनः जिला यक्ष्मा केंद्र गया और जांच कराया। अब मैं एमडीआर की चपेट में था।
आत्मविश्वास आया काम:
जिला यक्ष्मा केंद्र से दवा लेने के दौरान वहां के कर्मियों ने मेरा हौसला बुलंद किया। उन्होंने अनेक ऐसे उदाहरण दिए जिससे मेरे अंदर आत्मविश्वास पैदा हुआ। जिस समय मैं यहां दवा लेने आया था उस समय मेरा वजन 38 किलो था। अब जब मैंने पूरे 18 माह दवा खाई जो मेरा वजन 80 किलो है। ठीक होने पर मैं पुनः वहां गया और मैंने हर उस कर्मी और सरकार का धन्यवाद दिया, जिसकी बदौलत मैं अपने जीवन में अपने लक्ष्य और उज्जवल भविष्य को गढ़ने में जुट पाया। इसके साथ ही टीबी के इलाज दौरान संघर्ष और आत्मविश्वास मैंने पाया वह मेरे दैनिक जीवन पर भी प्रभाव डालता है। इस टीबी ने दो साल तो लिए पर पूरी तरह मुझे एक चैंपियन बना दिया।